महाकुंभ में 1500 लोग बने नागा साधु, अपनाया त्याग और तपस्या का मार्ग

Mon 20-Jan-2025,11:22 PM IST +05:30

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महाकुंभ में 1500 लोग बने नागा साधु, अपनाया त्याग और तपस्या का मार्ग
  • नागा साधु बनने के लिए उस व्यक्ति को सांसारिक जीवन का पूरी तरह से त्याग करना होता है। उसे अपनी इच्छाओं और सुख-संसार से दूर रहना पड़ता है। इसके साथ ही, उसे खुद का पिंडदान भी करना होता है।

  • अब हाल ही में 1500 नए नागा साधु प्रयागराज में जूना अखाड़ा में दीक्षा ग्रहण कर शामिल हुए हैं। इन साधुओं ने अपने माता-पिता सहित अपनी सात पीढ़ियों का पिंडदान किया है, जिसका मतलब यह है कि अब उनका परिवार से कोई संबंध नहीं रहा है।

  • नागा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठोर और जटिल होती है। इस प्रक्रिया में उम्मीदवार को 6 महीने से लेकर एक साल तक की समयावधि में कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इसमें सफलता पाने के लिए शख्स को पंच देव यानि शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश से दीक्षा प्राप्त करनी होती है।

Uttar Pradesh / Prayagraj (Allahabad) :

Prayagraj/ महाकुंभ या कुंभ के आयोजनों में नागा साधु हमेशा आकर्षण का केंद्र होते हैं। इन साधुओं के बारे में आम धारणा है कि वे कड़ी तपस्या और त्याग के प्रतीक होते हैं, और क्या आपको पता है कि नागा साधु बनने के लिए कितना कठिन रास्ता तय करना होता है?

कैसे बनते हैं नागा साधु?

नागा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठोर और जटिल होती है। इस प्रक्रिया में उम्मीदवार को 6 महीने से लेकर एक साल तक की समयावधि में कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। यह प्रक्रिया अखाड़ा समिति के द्वारा निर्धारित की जाती है और इसमें सफलता पाने के लिए शख्स को पंच देव से दीक्षा प्राप्त करनी होती है, जिनमें शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश शामिल होते हैं। इन्हें पंच देव भी कहा जाता है।

नागा साधु बनने के लिए उस व्यक्ति को सांसारिक जीवन का पूरी तरह से त्याग करना होता है। उसे अपनी इच्छाओं और सुख-संसार से दूर रहना पड़ता है। इसके साथ ही, उसे खुद का पिंडदान भी करना होता है। नागा साधु बनने के बाद वह भिक्षा में प्राप्त भोजन पर ही निर्भर रहता है। यदि कोई दिन उसे भोजन नहीं मिलता, तो वह उसी दिन को भूखा ही बिताता है।

पिंडदान और परिवार से वियोग

अब हाल ही में 1500 नए नागा साधु प्रयागराज में जूना अखाड़ा में दीक्षा ग्रहण कर शामिल हुए हैं। इन साधुओं ने अपने माता-पिता सहित अपनी सात पीढ़ियों का पिंडदान किया है, जिसका मतलब यह है कि अब उनका परिवार से कोई संबंध नहीं रहा है। वे सनातन धर्म की रक्षा, वैदिक परंपरा के संरक्षण और जनकल्याण के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हो गए हैं।

रजिस्ट्रेशन, स्क्रीनिंग और चयन प्रक्रिया

नागा साधु बनने के इच्छुक व्यक्ति को पहले अपना रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है। रजिस्ट्रेशन के बाद उनकी आवेदन की स्क्रीनिंग की जाती है। यह जांच छह महीने तक चलती है और इस दौरान यह सुनिश्चित किया जाता है कि व्यक्ति पर कोई आपराधिक मामला नहीं है और उसने कभी कोई गलत व्यवहार नहीं किया है। स्क्रीनिंग में पास होने के बाद आचार्य को उस व्यक्ति के बारे में रिपोर्ट दी जाती है और फिर चयन प्रक्रिया पूरी होती है।

नागा साधु बनना किसी साधारण प्रक्रिया से कम नहीं है। यह जीवनभर के त्याग, तपस्या और तपस्विता की यात्रा होती है, जिसमें व्यक्ति अपने सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रतिबद्ध होता है।